BA Semester-1 Hindi Kavya - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

अध्याय - 16
सूरदास
(व्याख्या भाग)

उद्धव ! यह मन निश्चय जानो।
मन क्रम बच मैं तुम्हें पठावत ब्रज को तुरत पलानो ॥
पूरन ब्रह्म, सकल, अविनासी ताके तुम हो ज्ञाता।
रेख, न रूप, जाति, कुल नाहीं जाके नहिं पितु माता ॥
यह मत दै गोपिन कहु आवहु बिरह नदी में भासति।
सूर तुरत यह जाय कहो तुमं ब्रह्म बिना नहीं आसति ॥ 7।।

शब्दार्थ - बच = बचन। क्रम = कर्म तूरति पठानो = शीघ्र प्रस्थान करो। अविनासी = अनश्वर। ज्ञात = ज्ञानी, जानकार भासति = डूबी है आसति = आसक्ति, मुक्ति।

प्रसंग - प्रस्तुत पद आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा सम्पादित व सूरदास रचित 'सूरसागर' के 'भ्रमरगीत सार' से उद्धृत है। सूरदास का कथन है कि श्रीकृष्ण उद्धव को दो प्रयोजनों की सिद्धि के लिए ब्रज भेज रहे हैं एक तो उद्धव के ज्ञान का पतन और दूसरा ब्रजवासियों को जो वियोग से जल रहे हैं आश्वासन एवं धैर्य मिलेगा।

व्याख्या - उद्धव की ज्ञान गर्व की बातें सुनकर कृष्ण ने कहा कि हे उद्धव ! तुम इस बात को निश्चय मन से जान लो कि मैं तुम्हें मनसा, वाचा, कर्मणा, ब्रज में भेज रहा हूँ। अतः तुम शीघ्र ही ब्रज की ओर प्रस्थान करो। हे उद्धव ! तुम्हारा ब्रह्म पूर्ण और नश्वर है। तुम उस ब्रह्म के सच्चे ज्ञाता हो। उस ब्रह्म की न कोई जाति है, न कुल है, न कोई माता-पिता है। वह ब्रह्म इन सारी उपाधियों से रहित है। तुम अपना यह सिद्धान्त गोपियों को सिखाकर आओ। क्योंकि वे तो विरह रूपी नदी में डूब रही है। भाव यह है कि ब्रज की गोपियाँ सगुण ब्रह्म का समर्थन करती हुई प्रेम विरह के कारण व्याकुल है। अतः तुम जाकर समझाओ कि ब्रह्म ज्ञान के बिना किसी का भी अस्तित्व नहीं है अर्थात् तुम वहाँ जाकर गोपियों को यह समझाओ वे मुझसे प्रेम करना छोड़ दे और निर्गुण ब्रह्म का ध्यान करें। इसे से उन्हें मुक्ति की प्राप्ति होगी। प्रेम और भक्ति से मुक्ति संभव नहीं है।

विशेष- ( 1 ) इसमें सगुण और निगुणोपासना विषयक द्वन्द्व का संकेत है।
(2) 'बिरह नदी में भासति' में निरंग रूपक 'यह मत गोपिन' दै आबहु में पर्यायोक्ति अलंकार है। इसके साथ ही व्यंग्य गर्भित उक्ति की प्रधानता है।

गोकुल सबै गोपाल उपासी।
जोग अंत साधत जे ऊधो ते सब बस ईसपुर कासी ॥
यद्यपि हरि हम तजि अनाथ करि तदपि रहति. चरननि रसरासी।
अपनी शीतलताहि न छाँड़त यद्यपि है ससि राहु गरासी ॥
का अपराध जोग लिखि पठवत प्रेमभजन तजि करत उदासी।
सूरदास ऐसी को बिरहिन माँगति मुक्ति तजे गुनरासी ॥ 21 ॥।

शब्दार्थ - सबै = सभी। गोपाल उपासी = गोपाल अर्थात् श्रीकृष्ण की उपासना करने वाले। जोग = योग। ईसपुर कासी = ईश्वर का नगर, महादेव की नगरी काशी, तजि = त्यागकर। रस रासी = रस में पगी हुई, आनन्द में डूबी हुई। ससि = चन्द्रमा। गररसी = ग्रस लेता है। पठवत = भेजते हैं। उदासी = विरक्त। बिरहिन = विरहिणी। गुनरासी = गुणों की राशि श्रीकृष्ण।

प्रसंग - उपरोक्त पद आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा सम्पादित 'भ्रमरगीत सार' से उद्धृत है। इस पद में श्रीकृष्ण भक्त कवि सूरदास ने गोपियों की विरहावस्था का भावपूर्ण चित्रण किया है। श्रीकृष्ण ने अपने सखा उद्धव को गोपियों के पास निर्गुण ब्रह्म की उपासना की शिक्षा देने के लिए भेजा है। इस पद में गोपियाँ उद्धव के ज्ञानमार्गी उपदेश को सुनकर कृष्ण के समक्ष श्रीकृष्ण के प्रति अपनी प्रेममार्गी भक्ति को श्रेष्ठ सिद्ध करती हुई श्रीकृष्ण की निष्ठुरता के बारे में पूछती है। वे उद्धव से कहती हैं -

व्याख्या - हे उद्धव ! यहाँ गोकुल में तो सभी नर-नारियाँ, गोप-गोपियाँ, गायों को पालने वाले श्रीकृष्ण की उपासना करते हैं। जो साधक, व्यक्ति अष्टांग योग की साधना करते हैं वे तो महादेव की नगरी काशी में रहते हैं। (तत्कालीन युग में काशी शहर निर्गुण ब्रह्म की उपासना का केन्द्र था ) यद्यपि श्रीकृष्ण ने हमें त्यागकर मथुरा में रहना आरम्भ कर दिया जिससे हम सभी अनाथ हो गई हैं फिर भी हम उन्हीं के चरणों के रस या आनन्द में डूबी हुई रहती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हम आज भी उनके चरणों का 'स्मरण करती हैं। गोपियाँ अपनी दशा समझाने के लिए चन्द्रमा का उदाहरण देते हुए कहती हैं कि भले ही राहु चन्द्रमा को ग्रस लेता है फिर भी चन्द्रमा अपनी शीतलता नहीं छोड़ता है। उसी प्रकार श्रीकृष्ण के वियोग रूपी राहु ने भले ही हमारे जीवन को संकट से भर दिया है फिर हम उनके प्रति अपने प्रेम को नहीं त्याग सकतीं। वे श्रीकृष्ण के योग-संदेश की ओर संकेत करके पूछती हैं कि ऐसा हम गोपियों ने क्या अपराध किया था कि उन्होंने तुम्हारे माध्यम से प्रेममार्ग को त्यागकर विरक्ति का मार्ग अपनाने का संदेश लिखकर हम गोपियों के पास भेज दिया। सूरदास जी कहते हैं कि इस गोकुल में ऐसी कौन सी विरहिणी गोपी है जो गुणों की राशि श्रीकृष्ण को त्यागकर मुक्ति की कामना करती है। अर्थात् ऐसी कोई भी गोपी नहीं है जो श्रीकृष्ण को छोड़कर मुक्ति की कामना करे।

विशेष - 1- सूरदास ने गोपियों के माध्यम से ज्ञानमार्गी भक्ति की तुलना में प्रेममार्गी भक्ति की श्रेष्ठता को दर्शाया है।
2- 'हरि हम' 'पठवत प्रेमभजन' 'माँगति मुक्ति' में अनुप्रास अलंकार है।
3- अपनी गरासी में दृष्टांत अलंकार है।
4- 'गोपाल' शब्द से परिकरांकुर अलंकार है।

आयो घोष बड़ो व्यापारी।
लाद खेंप गुन ज्ञान जोग की ब्रज में आय उतारी ॥
फाटक दे कर हाटक माँगत भोरै निपट सुधारी।
धुर ही तें खोटो खायो है लए फिर सिर भारी।
इनके कहे कौन डहकावै ऐसी कौन अजानी?
अपनो दूध छाँड़ि को पीवै खार कूप को पानी।
ऊधो जाहु सबार यहाँ तें बेगि गहरु जनि लावौ।
मुँहमाँग्यो पैहो सूरज प्रभु साहुहि आनि दिखावौ ॥ 23 ॥

शब्दार्थ - घोष = ग्वालों की बस्ती, गोकुल। खेप = बोझा। फाटक = फटकन, भूसा, निस्सार। हाटक = स्वर्ण। धारी = धारण करके, समझकर। धुर = प्रारम्भ। खोटो खायो = बेईमानी की कमाई खाना। डहकावे = धोखा खाए। अजानी = मूर्ख। कूप = कुआँ। सवार = सबेरे। बेगि = शीघ्रता से। गहरु = देर। जानि = मत। पैहो = पुरस्कार। साहुहि = महाजन को (कृष्ण)।

प्रसंग - प्रस्तुत पद आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा सम्पादित 'भ्रमरगीत' से उद्धृत है। इस पद में कवि सूरदास ने श्रीकृष्ण के मित्र व ज्ञानमार्गी भक्ति के संदेशवाहक उद्धव व उसकी योग साधना पर गोपियों को करारा वयंग्य करते दर्शाया है। प्रस्तुत में पद में गोपिकाएँ उद्धव को व्यापारी बताते हुए उसका उपहास उड़ा रही हैं। वे उसके द्वारा बताये गये ज्ञान-ध्यान आदि के भटकावे में नहीं आना चाहतीं।

व्याख्या - गोपियाँ उद्धव का संदेश सुनने के बाद परस्पर एक-दूसरे से कहती है कि देखो, अहीरों की बस्ती गोकुल में उद्धव जैसा बड़ा व्यापारी आया है। यहाँ 'बड़ा व्यापारी' व्यंग्य से कहा गया है। इसने गुण ज्ञान योग का जो भारी बोझा ले रखा है, उसे यहाँ गोकुल में आकर उतार दिया है। यह फटकन देकर सोना माँगता है। कहने का तात्पर्य यह है कि निर्गुण ज्ञान के बदले सगुण कृष्ण की भक्ति माँगता है। इसने यहाँ के वासियों को बिल्कुल भोला समझ लिया है जो वे अपेन स्वर्ग तुल्य कृष्ण प्रेम को त्यागकर शुष्क ज्ञान ले लेंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि गोपियों के लिए निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का उपदेश भूसे के समान व्यर्थ है जबकि उन्हें श्रीकृष्ण से प्रेम करना सोने के समान मूल्यवान दिखाई देता है। ऐसा प्रतीत होता है, इसने प्रारम्भ से ही बेईमानी की कमाई खायी है तभी तो सिर पर ज्ञान का बोझ लिए घूमता है। कहने का तात्पर्य यह है कि इस व्यापारी ने जो ज्ञान रूपी भारी बोझा सिर पर लाद रखा है, उसे किसी ने भी स्वीकार नहीं किया है। गोकुल में भला कौन इतनी मूर्ख है जो इसकी बातों में आकर धोखा खाएगी। अपना दूध (कृष्ण) छोड़कर भला कोई खारे कुएँ (शुष्क ज्ञान) का पानी क्यों पियेगा? अर्थात् यहाँ पर कोई भी गोपी उसके ज्ञान योग आदि से प्रभावित नहीं होगी। वे उद्धव से कहती है कि - हे उद्धव ! तुम बिना देरी किये शीघ्रता से यहाँ से सवेरे ही लौट जाओ। यदि तुम हमारे साहूकार अर्थात् कृष्ण को साथ लाकर दर्शन करवा दोगे तो तुम्हें मुँहमांगा पुरस्कार देगीं।

विशेष - 1- इस पद में निर्गुण ब्रह्म को उपेक्षणीय बताया है।
2- अपने दूध ----- पानी में दृष्टांत अलंकार है।
3- द्वितीय व अन्तिम पंक्ति में रूपक तथा तृतीय पंक्ति में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।

जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहैं।
यह ब्योपार तिहारो ऊधो एसोई फिरि जैहै ॥
जापै लै आए हौ मधुकर ताके उर न समैहै।
दाख छाड़ि कै कटुक निबौरी को अपने मुख खैहैं?
मूरी के पातन के केना को मुक्ताहल दैहै।
सूरदास प्रभु गुनहिं छाँड़िकै को निर्गुन निर है?।। 24 ॥

शब्दार्थ - ठगौरी = ठगने का सौदा, धोखा देने वाली चीज तिहारौ = तुम्हारा। एसोई= ऐसी ही। जापै = जिसके लिए उर = हृदय दाख= मीठे अंगूर। कटुक = कड़वी। नीबौरी = नीम का फल, निबौली। मूरी = मूली। पातन = पत्ते। केना = वह व्यापार जिसमें मूल्य के अनुरूप वस्तुओं का आदान- प्रदान होता है, इसमें धन का प्रयोग नहीं होता। मुक्ताहल = मोती। गुनहि= गुणों से युक्त। निरबैहै = निर्वाह करेंगे, ध्यान धरेंगे।

प्रसंग - प्रस्तुत पद आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा सम्पादित व सूरदास द्वारा रचित 'भ्रमरगीत' से अवतरित है। कृष्ण भक्त कवि सूरदास ने इस पद में गोपियों के माध्यम से ज्ञान, योग-साधना आदि का उपदेश देने हेतु मथुरा से आये उद्धव के निर्गुण व ब्रह्म व उसकी योग साधना पर प्रेममार्गी भक्ति की श्रेष्ठता सिद्ध की है। इस पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम को दर्शाती हुई उद्धव से कहती है कि -

व्याख्या - हे उद्धव ! तुम्हारा यह योग रूपी धोखा देने वाला सौदा यहाँ ब्रज में नहीं बिक सकता। कहने का तात्पर्य यह है कि गोपियों को श्रीकृष्ण की उपासना के समक्ष निर्गुण ब्रह्म की उपासना करना घाटे का सौदा प्रतीत होता है। इसलिए वे उद्धव से कहती हैं कि तुम जो निर्गुण ब्रह्म, योग साधना रूपी माल यहाँ बेचने के लिए लाये हो वह यहाँ से वैसे ही वापस चला जायेगा, अर्थात् तुम्हारी योग साधना . सम्बन्धी उपदेश न तो कोई सुनेगा और न ही ग्रहण करेगा। हे उद्धव ! तुम जिन लोगों के लिए यह माल यहाँ पर लाये हो, उन लोगों के मन में यह कभी नहीं समायेगा अर्थात् यहाँ ब्रज में कोई गोप-गोपी तुम्हारी निर्गुण ब्रह्म सम्बन्धी बातों को अपने हृदय में धारण नहीं करेगा। अब तुम्ही बताओ इस संसार में ऐसा कौन मूर्ख है जो मीठे अंगूरों को छोड़कर कड़वी निबौली खाएगा। अर्थात् गोपियों के लिए श्रीकृष्ण का प्रेम मीठे अंगूर के समान है जबकि उद्धव का योग साधना का उपदेश कड़वी निबौली के समान है और गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम को भूला कर निर्गुण ब्रह्म को उपासना नहीं कर सकतीं। गोपियाँ उद्धव से पूछती हैं कि हे उद्धव ! तुम ही बताओ कि इस संसार में ऐसा कौन मूर्ख व्यक्ति होगा जो मूली के पत्तों को प्राप्त करने के लिए मोती देना स्वीकार करेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि गोपियों के लिए श्रीकृष्ण का प्रेम मोती के समान मूल्यवान है जबकि उनकी दृष्टि में उद्धव का निर्गुण ब्रह्म का उपदेश मूली के पत्तों के समान मूल्यहीन है अतः वे अपने मूल्यवान मोती के बदले में मूली के पत्ते प्राप्त करने की मूर्खता नहीं करना चाहती सूरदास कहते हैं कि गोपियाँ उद्धव से कहने लगी कि हे उद्धव ! तुम्हीं बताओ कि हम गुणों के भंडार श्रीकृष्ण को छोड़कर निर्गुण ब्रह्म की उपासना करने से कैसे निर्वाह करेगी? अर्थात् उनके लिए निर्गुण ब्रह्म की उसना व्यर्थ है।

विशेष 1- इस पद में कवि सूरदास ने व्यापार व विनिमय के प्रसंग के माध्यम से निर्गुण ब्रह्म के स्थान पर सगुण ब्रह्म की महत्ता स्थापित किया है।
2- 'निर्गुण निरबै' में अनुप्रास अलंकार है।
3- 'दाख खैहे' तथा 'मूरी देहै' में दृष्टांत अलंकार है।
4- 'गुन' व 'निर्गुन' में श्लेष अलंकार है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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